एक ही हिन्दू से दोस्ती रखते थे मुहम्मद अली जिन्ना, उसको भी पाकिस्तान ले गए और…

पाकिस्तान के निर्माण के समय इसके संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना ने द्वि-राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया था, जिसमें भारत में मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए पाकिस्तान में हिंदुओं को समानता का वादा किया था. 11 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान की संविधान सभा को संबोधित करते हुए जिन्ना ने कहा, “आप पाएंगे कि समय के साथ हिंदू हिंदू नहीं रहेंगे और मुस्लिम मुस्लिम नहीं रहेंगे. धार्मिक अर्थ में नहीं, क्योंकि यह प्रत्येक व्यक्ति की निजी आस्था है. लेकिन राजनीतिक अर्थों में, राज्य के नागरिकों के रूप में.”

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार मुहम्मद अली जिन्ना की समावेशिता केवल बयानबाजी नहीं थी, जैसा कि पूर्वी पाकिस्तान के अनुसूचित जाति के हिंदू जोगेंद्र नाथ मंडल को देश के पहले कानून मंत्री के रूप में नियुक्त करने से पता चलता है. जिन्ना ने मंडल के संसद के एक सत्र की अध्यक्षता करने की भी वकालत की, जिसमें मंडल को पहले गवर्नर जनरल के रूप में शपथ दिलाई जानी थी. इतिहासकार अहमद सलीम अपनी पुस्तक ‘पाकिस्तान और अक्लियतीन’ में तर्क देते हैं, “यह तथ्य कि अल्पसंख्यक सदस्यों में से एक को सत्र की अध्यक्षता करने के लिए चुना गया था. नए राज्य के प्रगतिशील रवैये का संकेत देता है. और यह भविष्य के लिए अच्छा संकेत है. पाकिस्तान स्वयं भारतीय उपमहाद्वीप के अल्पसंख्यकों के अथक प्रयासों से अस्तित्व में आया था.” जोगेंद्र नाथ मंडल ने लंबे समय तक मुसलमानों के हितों की वकालत की थी और वह 1949 के उद्देश्य प्रस्ताव के प्रस्तावक थे जिसने जिन्ना के धर्मनिरपेक्ष पाकिस्तान को एक मुस्लिम राज्य में बदल दिया था.

कानून की पढ़ाई की, लेकिन जनसेवा को चुना
जोगेंद्रनाथ मंडल का जन्म ब्रिटिश इंडिया की बंगाल प्रेसिडेंसी के बैरीसाल जिले में 29 जनवरी 1904 को हुआ था.यह क्षेत्र पहले पूर्वी पाकिस्तान और आज बांग्लादेश का हिस्सा है. मंडल नामशूद्र समुदाय में जन्मे थे. वह पढ़ाई में बहुत होशियार थे. स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1934 में कानून में डिग्री ली. मंडल ने कानून की पढ़ाई तो की, लेकिन उसे पेशे के तौर पर नहीं अपनाया. उन्होंने दलितों पर अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और अपना पूरा जीवन उनके उत्थान और समाज कल्याण के लिए लगाने का फैसला किया. उन्होंने अपना राजनैतिक जीवन 1937 के भारतीय प्रांतीय चुनावों में बंगाल विधानसभा के बाखरगंज नॉर्थईस्ट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर शुरू किया. इस चुनाव में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जिला समिति के अध्यक्ष सरल कुमार दत्ता को हराया.

मुस्लिम लीग की ओर झुकाव, जिन्ना के करीब आए
मंडल पर सुभाष चंद्र बोस का गहरा प्रभाव था. बोस के कांग्रेस छोड़ने के बाद मंडल मुस्लिम लीग से जुड़ गए. वह डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर के अनुयायी थे और 1946 में अंबेडकर को संविधान सभा के चुनावों में बंगाल से जिताने में मंडल की बड़ी भूमिका थी. तब अंबेडकर बंबई से जीत हासिल नहीं कर सके थे. मंडल भी संविधान सभा के सदस्य थे और उन्होंने अंबेडकर से परिचर्चाएं कर उन्हें सलाह देकर भारतीय संविधान के निर्माण में भी बड़ी भूमिका निभाई. 1946 के दंगों में उन्होंने पूर्वी बंगाल का दौरा किया और दलितों से मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा ना करने का आग्रह किया. क्योंकि वह मुस्लिमों को भी दलितों की तरह हिंदू उच्च जातियों के शोषण का शिकार मानते थे. यहां उन्होंने मुस्लिम लीग का समर्थन किया और मुहम्मद अली जिन्ना के करीब आ गए.

बने पाकिस्तान के कानून और श्रम मंत्री
अक्टूबर 1946 में अंतरिम भारत सरकार में जिन्ना ने मंडल को लीग के पांच प्रतिनिधियों में से एक के तौर पर चुना और उन्होंने कानून मंत्रालय चुना. बंटवारे के बाद मंडल पाकिस्तान चले गए वहां वह संविधान सभा के सदस्य होने का साथ अस्थायी अध्यक्ष बने और उन्हें पाकिस्तान का पहला श्रम और कानून मंत्रालय दिया गया. लेकिन कराची जाने के बाद उन्होंने पाकिस्तान में भी दलितों के साथ भारी भेदभाव देखा और हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की खबरों ने उन्हें खासा परेशान किया. सितंबर 1948 में जिन्ना की मौत के बाद उनका महत्व पाकिस्तानी सरकार में कम हो गया. पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान से उन्होंने बहुत गुजारिश कर हिंदुओं और दलितों की समस्या की ओर ध्यान देने को कहा, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला.

1950 में भारत लौटे, किसी पार्टी ने नहीं दिया भाव
आखिर 1950 में उन्होंने पाकिस्तान सरकार से इस्तीफा दे दिया और भारत लौट आए. पाकिस्तान में सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली हिंदू राजनेता निस्संदेह मंडल थे. मंडल ने अपने त्याग पत्र में लिखा, “मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि पाकिस्तान हिंदुओं के रहने के लिए कोई जगह नहीं है और धर्मांतरण या परिसमापन की अशुभ छाया से उनका भविष्य अंधकारमय हो गया है.” दलित-मुस्लिम एकता का टूटा सपना लेकर मंडल जब भारत पहुंचे तो उन्हें किसी भी पार्टी ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वह पहले ही पाकिस्तान के हो चुके हैं यह मान लिया गया था. लेकिन भारत पहुंचने के बाद मंडल पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए काम करने लगे. 5 अक्टूबर 1968 को पश्चिम बंगल के उत्तर 24 परगना के बॉनगांव में उनका देहांत हो गया.

मंडल के बाद पाकिस्तानी राजनीति में हिंदू नेता
मंडल के बाद, हिंदू राजनेताओं को पाकिस्तानी राजनीति में कभी इतना महत्वपूर्ण स्थान नहीं मिला. हालांकि, भारतीय सीमा से लगभग 60 किलोमीटर दूर उमरकोट के कई व्यक्ति राष्ट्रीय परिदृश्य को प्रभावित करना जारी रखे हुए हैं. उमरकोट अकबर के जन्मस्थान के रूप में प्रसिद्ध है. अकबर का जन्म 1542 में उमरकोट किले में हुआ था जब हिंदू राजा राणा परसाद ने उनके पिता हुमायूं को शरण दी थी. उमरकोट में 52 प्रतिशत आबादी हिंदू है, जिससे उमरकोट पाकिस्तान का एकमात्र ऐसा जिला बन गया है, जहां बहुमत मुस्लिम नहीं है. जिले के पहले प्रमुख हिंदू राजनेता राणा चंद्र सिंह थे, जिनके पिता, राणा अर्जुन सिंह ने भारत में प्रवास करने के बजाय अपनी पैतृक भूमि में रहना चुना. राणा चंद्र सिंह पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और 1977 और 1999 के बीच सात बार नेशनल असेंबली के लिए चुने गए थे. उन्होंने कृषि और राजस्व मंत्री के रूप में भी कार्य किया. चंद्र सिंह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष थे. हालांकि, अपनी चुनावी और राजनीतिक सफलता के बावजूद, राणा चंद्र सिंह को अभी भी मुस्लिम राजनेताओं द्वारा संदिग्ध माना जाता था. जैसा कि एक सेवानिवृत्त पाकिस्तानी नौकरशाह, वसीम अल्ताफ कहते हैं, “जब भी कैबिनेट को रक्षा संबंधी ब्रीफिंग दी जाती थी, राणा चंद्र सिंह को कैबिनेट कक्ष छोड़ने के लिए कहा जाता था.”

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