NCERT डायरेक्टर : आज के समय में हर कोई अपने बच्चों को अंग्रेज मीडियम स्कूल में पढ़ाना चाहता है और इसका आकर्षण लगातार बढ़ता जा रहा है. इस पर NCERT के डायरेक्टर डीपी सकलानी ने अफसोस जताते हुए दावा किया कि यह अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से कम नहीं है, क्योंकि सरकारी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई हो रही है. उन्होंने कहा, ‘माता-पिता अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों के प्रति आकर्षित हैं, वे अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं, भले ही वहां टीचर न हों या वे पर्याप्त प्रशिक्षित न हों. यह आत्मघात से कम नहीं है और यही कारण है कि नयी (राष्ट्रीय) शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाने पर जोर दिया गया है.’
रटने से क्या हो रहा बच्चों को नुकसान?
सकलानी ने कहा कि अंग्रेजी में विषय-वस्तु को रटने की प्रथा ने बच्चों में ज्ञान की हानि की है और उन्हें उनकी जड़ों और संस्कृति से दूर कर दिया है. सकलानी ने कहा, ‘हम अंग्रेजी में रटना शुरू कर देते हैं और यहीं से ज्ञान की हानि होती है. भाषा एक सक्षम कारक होनी चाहिए, इससे अक्षम नहीं होना चाहिए. अब तक हम अक्षम थे और अब बहुभाषी शिक्षा के माध्यम से हम खुद को सक्षम बनाने की कोशिश कर रहे हैं.’
क्यों मातृभाषा में होनी चाहिए पढ़ाई
सकलानी ने कहा, ‘पढ़ाई मातृभाषा पर आधारित क्यों होना चाहिए? क्योंकि जब तक हम अपनी मातृभाषा, अपनी जड़ों को नहीं समझेंगे, हम कुछ भी कैसे समझेंगे? और बहुभाषी दृष्टिकोण का मतलब यह नहीं है कि किसी एक भाषा में शिक्षण समाप्त किया जाए, बल्कि जोर कई भाषाओं को सीखने पर है.’ एनसीईआरटी प्रमुख ने ओडिशा की दो आदिवासी भाषाओं में ‘प्राइमर’ (पुस्तकें) विकसित करने के केंद्रीय शिक्षा मंत्री की एक पहल का हवाला दिया, ताकि छात्रों को उनके स्थानीय स्वभाव और संस्कृति पर आधारित चित्रों, कहानियों और गीतों की मदद से पढ़ाया जा सके, ताकि उनके बोलने के कौशल, सीखने के परिणाम और संज्ञानात्मक विकास में सुधार हो सके. उन्होंने कहा, ‘हम अब 121 भाषाओं में ‘प्राइमर’ (पुस्तकें) विकसित कर रहे हैं, जो इस साल तैयार हो जाएंगे और इससे स्कूल जाने वाले बच्चों को उनकी जड़ों से जोड़ने में मिलेगी.’
वर्ष 2020 में अधिसूचित नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) ने सिफारिश की थी कि जहां भी संभव हो, कम से कम कक्षा पांच तक शिक्षा का माध्यम घरेलू भाषा, मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्र की भाषा होनी चाहिए. नीति ने सिफारिश की कि मातृभाषा में शिक्षण अधिमानतः कक्षा 8 और उससे आगे तक होना चाहिए. इसके बाद, जहां भी संभव हो, घरेलू या स्थानीय भाषा को भाषा के रूप में पढ़ाया जाना जारी रहेगा.
पीएम मोदी ने भी मातृभाषा पर दिया जोर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल कहा था कि शिक्षा में मातृभाषा के इस्तेमाल ने भारत में छात्रों के लिए ‘न्याय का एक नया रूप’ शुरू किया है और इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक ‘बहुत महत्वपूर्ण कदम’ करार दिया था. इस कदम की विभिन्न हितधारकों और विपक्षी दलों ने भी आलोचना की. शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि किसी पर कोई भाषा नहीं थोपी जा रही है.
पिछले साल अधिसूचित नए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे (NCF) के अनुसार, कक्षा 9 और 10 के छात्रों को अब अनिवार्य रूप से तीन भाषाओं की पढ़ाई करनी होगी, जिसमें दो भारतीय मूल भाषाएं शामिल हैं, जबकि कक्षा 11 और 12 के छात्रों को एक भारतीय और एक अन्य भाषा का अध्ययन करना होगा.
NCERT की किताबों किए गए हैं बड़े बदलाव
कक्षा 12 की संशोधित राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में बाबरी मस्जिद का उल्लेख न करके उसे “तीन गुंबद वाली संरचना” के रूप में संदर्भित करने के कारण एनसीईआरटी विवाद के केंद्र में है. कक्षा 11 की नयी राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में अब कहा गया है कि राजनीतिक दल “वोट बैंक की राजनीति” पर नज़र रखते हुए “एक अल्पसंख्यक समूह के हितों को प्राथमिकता देते हैं”, जिससे “अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण” होता है. यह 2023-24 के शैक्षणिक सत्र तक जो पढ़ाया जाता था, उससे पूरी तरह से अलग है- कि अगर छात्र “गहनता से सोचें”, तो उन्हें पता चलेगा कि इस बात के “बहुत कम सबूत” हैं कि वोट बैंक की राजनीति देश में अल्पसंख्यकों के पक्ष में है.