प्रॉपर्टी : लिमिटेश ऐक्ट 1963 के तहत निजी अचल संपत्ति पर लिमिटेशन (परिसीमन) की वैधानिक अवधि 12 साल जबकि सरकारी अचल संपत्ति के मामले में 30 वर्ष है। यह मियाद कब्जे के दिन से शुरू होती है।आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से…
बहुत से लोगों को प्रोपर्टी से जुड़ी कानूनी जानकारी नहीं होती और इसी के कारण वो अपनी ही प्रोपर्टी से हाथ धो बैठते हैं। अचल संपत्ति से जुड़ा सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम निर्णय दिया है जोकि हर किसी के लिए जानना जरूरी है।
अगर आपकी किसी अचल संपत्ति पर किसी ने कब्जा जमा लिया है तो उसे वहां से हटाने में लेट लतीफी बिल्कुल भी नहीं करें। अपनी संपत्ति पर दूसरे के अवैध कब्जे को चुनौती देने में देर की तो संभव है कि आपकी प्रोपर्टी आपके हाथ से निकल जाएगा। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में एक बड़ा फैसला सुनाया है।
12 वर्ष के अंदर उठाना होगा कदम
सर्वोच्च अदालत के फैसले के अनुसार, अगर वास्तविक या वैध मालिक (Property Owner) अपनी अचल संपत्ति को दूसरे के कब्जे से वापस पाने के लिए समय सीमा के अंदर कदम नहीं उठा पाएंगे तो उनका मालिकाना हक खत्म हो जाएगा और उस अचल संपत्ति पर जिसने कब्जा कर रखा है, उसी को कानूनी तौर पर मालिकाना हक मिल जाएगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को इस दायरे में नहीं रखा गया है। यानी, सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करने वाले को कभी भी मालिकाना हक नहीं मिल सकता है।
तीन जजों की बेंच ने की कानून की व्याख्या
लिमिटेशन एक्ट 1963 के अनुसार निजी अचल संपत्ति पर लिमिटेशन (परिसीमन) की वैधानिक अवधि 12 साल जबकि सरकारी अचल संपत्ति के मामले में 30 साल है। ये मियाद कब्जे के दिन से ही शुरू होती है। उच्च न्यायालय के जजों जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने इस कानून के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए कहा कि कानून उस व्यक्ति के साथ है जिसने अचल संपत्ति पर 12 सालों से अधिक से कब्जा कर रखा है। अगर 12 साल बाद उसे वहां से हटाया गया तो उसके पास संपत्ति पर दोबारा अधिकार पाने के लिए कानून की शरण में जाने का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, हमारा फैसला है कि प्रोपर्टी (Possession of Property) पर जिसका कब्जा है, उसे कोई दूसरा व्यक्ति बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के वहां से हटा नहीं सकता है। अगर किसी ने 12 साल से अवैध कब्जा कर रखा है तो कानूनी मालिक के पास भी उसे हटाने का अधिकार भी नहीं है।
ऐसी स्थिति में अवैध कब्जे वाले को ही कानूनी अधिकार, उस प्रोपर्टी का मालिकाना हक मिल जाएगा। हमारे विचार से इसका परिणाम यह होगा कि एक बार अधिकार (राइट), मालिकाना हक (टाइटल) या हिस्सा (इंट्रेस्ट) मिल जाने पर उसे वादी कानून के अनुच्छेद 65 के दायरे में तलवार की तरह इस्तेमाल कर सकता है, वहीं प्रतिवादी के लिए ये एक सुरक्षा कवच होगा। अगर किसी व्यक्ति ने कानून के तहत अवैध कब्जे को भी कानूनी कब्जे में तब्दील कर लिया तो जबरदस्ती हटाए जाने पर वो कानून की मदद ले सकता है।
ऐसे छुड़ा सकते हैं प्रोपर्टी से कब्जा
अगर आपकी प्रोपर्टी पर किसी ने कब्जा कर लिया है तो आप आपराधिक और सिविल दोनों प्रकार के कानूनों का सहारा ले सकते हैं। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 धोखाधड़ी के अनेक मामलों में लगाई जाती है। इसलिए किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से आपराधिक बल के जरिए बेदखल करने पर ये धारा लगाई जाती है। इस धारा के तहत शिकायत के बाद संबंधित पुलिस थाने को तुरंत कार्रवाई करनी होती है। किसी भी पीड़ित व्यक्ति को सबसे पहले अपने इस अधिकार का उपयोग करना चाहिए।
IPC की धारा 406 के तहत किसी व्यक्ति की संपत्ति में विश्वास के आधार पर घुसकर उस पर कब्जा कर लेना संगीन अपराध है। पीड़ित पक्षकार इस अन्याय को लेकर पुलिस थाने में शिकायत दे सकता है। वहीं, आईपीसी की धारा 467 कूटरचना पर लागू होती है, जिसमें किसी संपत्ति (Property) को फर्जी दस्तावेजों के जरिए अपने नाम कर लिया है।
इस कानून से मिलेगा तुंरत इंसाफ
स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट 1963, ये कानून त्वरित न्याय के लिए मील का पत्थर साबित हुआ है। इस अधिनियम की धारा 6 में किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से बेकब्जा करने पर समाधान उपलब्ध कराती है।
विशेष तौर पर जब किसी दूसरे के द्वारा संपत्ति में घुसकर उस पर कब्जा कर लिया गया हो। इस धारा के अंतर्गत पीड़ित को सरल संक्षिप्त न्याय मिलता है। हालांकि, प्रॉपर्टी पर अवैध कब्जे के मामले में सबसे पहले पीड़ित व्यक्ति को वकील या जानकारों से कानूनी मदद लेनी चाहिए। दूसरा हर व्यक्ति को अपनी संपत्ति के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। क्योंकि अवैध कब्जे के मामले अधिकांश वहां होते हैं जहां लापरवाही पूर्वक किसी जमीन, मकान या भूखंड को बिना देख रेख के छोड़ देते हैं।