नेशनल रीडिंग डे का इतिहास ,जानें किसने निभाई अहम भूमिका

नेशनल रीडिंग डे : आज का दिन नेशनल रीडिंग डे के तौर पर मनाया किया जाता है. कम ही लोग ये जानते होंगे कि हर साल 19 जून को यह स्पेशल दिन सेलिब्रेट किया जाता है. साल 1996 से ही पी.एन. पणिक्कर को सम्मान देने के मकसद से यह दिन मनाया जाता है. बता दें कि एजुकेशन मिनिस्ट्री केरल 19 से 25 जून को वयन वरम यानी रीडिंग वीक के तौर पर मनाती है. आज हम आपको बताएंगे कि क्या है इस दिन को मनाने के पीछे की कहानी और मकसद…

क्या है नेशनल रीडिंग डे का इतिहास?
पी.एन. पणिक्कर का जन्म 1 मार्च 1909 को नीलमपुर में गोविंदा पिल्लाई और जानकी के घर हुआ. केरल में उन्हें लाइब्रेरी मूवमेंट का जनक कहा जाता है, इसलिए उन्हें यहां बहुत ही सम्मान के साथ याद किया जाता है. साल 1926 में पी.एन. पणिक्कर ने अपने गृहनगर में सनातनधर्म पुस्तकालय की शुरुआत की. इस समय में शिक्षण का कार्य करते थे.
नेशनल रीडिंग डे, यह खास दिन केरल के सबसे सम्मानित शिक्षकों में से एक पी.एन. पणिक्कर की याद में, उन्हें सम्मान देने के उद्देश्य से हर साल मनाया जाता है. पी.एन. पणिक्कर को केरल के लाइब्रेरी मूवमेंट का जनक कहा जाता है, उनका पूरा नाम पुथुवयिल नारायण पणिक्कर था. दरअसल, 19 जून 1995 को पी.एन. पणिक्कर की मृत्यु हुई थी. उनकी पहली डेथ एनिवर्सरी नेशनल रीडिंग डे मनाने की शुरुआत हुई.

पणिक्कर ने थिरुविथमकूर ग्रंथशाला संघ के जरिए त्रावणकोर लाइब्रेरी एसोसिएशन को लीड किया. 47 लोकल लाइब्रेरी वाले इस क्लब ने ‘रीड एंड ग्रो’ स्लोगन दिया. इस क्लब ने लोगों को किताबों के अहमियत समझाई और उन्हें जागरूक किया.

पी.एन. पणिक्कर को राज्य की 100 प्रतिशत साक्षरता दर में योगदान देने के लिए याद किया जाता है. 1990 में केरल को यह दर्जा मिल गया था. इसके पीछे पणिक्कर और उनके लाइब्रेरी मूवमेंट की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही. इतना ही नहीं कहा जाता है कि केरल में रीडिंग कल्चर उन्होंने ही विकसित की. 1956 में केरल राज्य बनने के बाद संघ केरल ग्रंथशाला संघ बन गया. पी.एन. पणिक्कर ने अपनी मेहनत की बदौलत करीब 6,000 पुस्तकालयों को अपने नेटवर्क में शामिल किया था, जिसे 1975 में इसे यूनेस्को कुप्रसकाया अवॉर्ड दिया गया.

पूरे हफ्ते होता है सेलिब्रेशन
नेशनल रीडिंग डे के अवसर पर यहां सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि पूरे हफ्ते सेलिब्रेशन किए जाते हैं. केरल हर साल उनकी लीगेसी का जश्न मनाने के साथ ही आज भी इन छोटे-बड़े कार्यक्रमों के जरिए पढ़ने और पढ़ाने की अहमियत समझाता है.

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