भारतीय खानों की कल्पना बिना मसालों के नहीं की जा सकती है. मसालों के जरिए ही व्यंजनों का स्वाद बढ़ता है. जीरे भी एक जरूरी मसाला है, जिसके बिना सब्जी का स्वाद अधूरा ही लगता है. सिर्फ सब्जियों में ही नहीं बल्कि जीरे का इस्तेमाल आयुर्वेदिक-हर्बल दवाओं में भी किया जा सकता है. कई बीमारियों जैसे पेट दर्द, मोटापा, पाचन और बवासीर, अस्थमा, अनिद्रा, त्वचा विकार, श्वसन संबंधी विकार और ब्रोंकाइटिस के लिए भी जीरे का प्रयोग कई तरह किया जाता है. यानी इसकी डिमांड साल भर बनी रहती है. ऐसे में इसकी खेती कर काफी मुनाफा भी कमाया जा सकता है. बीते सालों में जीरे की कीमत भी काफी तेजी से बढ़ी है. बाजार में अभी 100 ग्राम जीरा 100 से 120 रुपये मिलता है.
भारत में जीरे का प्रमुख रूप से उत्पादन गुजरात और राजस्थान में किया जाता है. अकेले राजस्थान से देश के कुल उत्पादन का 28 प्रतिशत हिस्सा रहता है. हालांकि, बाकी राज्यों में भी इसकी खेती का प्रसार तेजी से हो रहा है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अगर जीरे की खेती सही तरीके से की जाए तो इससे लाखों आराम से कमाए जा सकते हैं. भारत में इस समय प्रमुख रूप से जीरे की RZ-19, जीसी-1, आरजेड 209 जैसी किस्मों की खेती की जाती है.
समझें कमाई का आंकड़ा
कमाई का आंकड़ा समझें तो अगर आपने लगभग 27 क्विंटल जीरे की खेती की और अगर आप लगभग 32,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर इसकी बिक्री करते हैं. तो इस तरह से 27 क्विंटल बेचकर 8.65 लाख रुपये तक कमा सकते हैं. ऐसी कीमत बाजार में मिल जाती है. इसकी खेती में प्रति एकड़ 30 से 35 हजार रुपये का खर्च आता है. वहीं, जीरे की खेती में एक एकड़ में औसतन 7 से 8 क्विंटल बीज मिल जाता है. ऐसे में मुनाफा ज्यादा ही होता है.
कैसी जलवायु चाहिए?
जीरे की फसल आर्द्र और भारी वर्षा में बेहतर नहीं होती है. यह मध्यम शुष्क और ठंडी जलवायु में अच्छी तरह से पनपता है और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु को इसेक लिए आदर्श माना जाता है. मिट्टी की बात करें तो जीरे की खेती के लिए दोमट मिट्टी की जरूरत होती है जिसमें कार्बनिक पदार्थों के साथ अच्छी जल निकासी की व्यवस्था हो. अगर आप व्यावसायिक खेती की प्लानिंग कर रहे हैं तो ऐसे खेतों का चयन करें जिसमें कम से कम पिछले 3 से 4 वर्षों के दौरान जीरा की खेती नहीं की गई हो. जीरे की खेती के लिए नवंबर से दिसंबर तक का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है.