छात्रों की सहूलियत के लिए इस शख्स ने खोली घर में ही लाइब्रेरी

लाइब्रेरी : आज भी कुछ जगह ऐसी हैं जहां बच्चे पढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन पढ़ाई की सुविधा न होने के कारण उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ती है. हालांकि, बिहार के मल्लेहपुर निवासी कौशल किशोर ने अपने गांव की इस समस्या का काफी बेहतरीन समाधान निकाला है, जिसके लिए हर कोई उनका सराहना करता है. दरअसल, उनके गांव और शहर के बीच की दूरी करीब 10 किलोमीटर है और छात्रों को पढ़ाई के लिए हर रोज शहर तक पैदल चलना पड़ता था.

कमाई का एक बड़ा हिस्सा छात्रों की बेहतरी के लिए किया खर्च
सर्दी हो, गर्मी हो या बरसात, छात्रों को तीनों मौसम में पैदल चलकर शहर जाना पड़ता था. गांव में बच्चों के पढ़ने के लिए अच्छी सुविधा न होने के कारण उन्हें मजबूरन शहर जाना पड़ता था. इसे समझते हुए कौशल ने अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा छात्रों की बेहतरी के लिए खर्च किया और अपने घर में एक स्टडी सेंटर कम लाइब्रेरी बनवाई जहां बच्चे आराम से बैठकर बिना किसी परेशानी के पढ़ाई कर सकते हैं. उनका यह प्रयास रंग ला रहा है और उनकी इस लाइब्रेरी में हर रोज करीब 60 बच्चे पढ़ने आते हैं.

मंगवाई 1500 से ज्यादा परीक्षा की किताबें
कौशल किशोर ने अपने घर में एक लर्निंग सेंटर (डिजिटल लाइब्रेरी) बनाई है, जहां बच्चे हर रोज पढ़ने आते हैं. कौशल किशोर कृषि विभाग में कार्यरत हैं. उन्होंने अपनी डिजिटल लाइब्रेरी में एयर कंडीशनिंग से लेकर अन्य सभी सुविधाओं का ख्याल रखा है. कौशल किशोर बच्चों को यूपीएससी, बीपीएससी, रेलवे, एसएससी, बैंकिंग आदि कॉम्पिटिटिव परीक्षाओं की तैयारी के लिए उपयोगी किताबें और स्टडी मटेरियल भी मुफ्त में उपलब्ध कराते हैं, ताकि छात्रों को किसी तरह की कोई परेशानी न हो और वे निश्चिंत होकर तैयारी कर सकें. उन्होंने बच्चों के लिए 1500 से ज्यादा परीक्षा की किताबें मंगवाई हैं.

लाइब्रेरी में पढ़कर हासिल कर रहे सरकारी नौकरी
कौशल किशोर ने बताया कि उनकी मां टीचर थीं और उनका सपना था कि उनके गांव के बच्चे पढ़-लिखकर अच्छे प्रोफेशन में जाएं. वह अपनी मां के इस सपने को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं. मां के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने घर में डिजिटल लाइब्रेरी बनाई है, जहां बच्चे पढ़ाई कर सकते हैं. यहां रोजाना सुबह 6:00 बजे से 11:00 बजे तक कई बच्चे जुटते हैं. सभी बच्चे विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. कौशल ने बताया कि पिछले महीने दो बच्चों का एसएससी में सेलेक्शन हुआ है. उनका सपना है कि गांव के ज्यादातर बच्चों को अच्छी सरकारी नौकरी मिले. कौशल किशोर के इस प्रयास की अब सराहना हो रही है.

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