हिंदू कैलेंडर के अनुसार, होलाष्टक का प्रारंभ फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होता है. होली से पूर्व के 8 दिन होलाष्टक कहलाते हैं. होलिका दहन वाले दिन होलाष्टक का समापन होता है. होलाष्टक शब्द का निर्माण होली और अष्टक से मिलकर हुआ है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक के समय में सभी प्रमुख ग्रह उग्र स्वभाव में होते हैं, इस वजह से उस समय में कोई भी शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है क्योंकि उसके शुभ परिणाम नहीं मिल पाते. श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी से जानते हैं कि होलाष्टक कब से कब तक है? होलाष्टक में क्या करें और क्या न करें?
कब से शुरू है होलाष्टक 2024?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल 16 मार्च की रात 09:39 पीएम से फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि लग रही है और 17 मार्च को सुबह 09:53 एएम पर खत्म हो रही है. उदयातिथि के आधार पर फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि 17 मार्च को है, इस वजह से होलाष्टक का प्रारंभ 17 मार्च से हो रहा है.
किस दिन है होलाष्टक का समापन?
17 मार्च से शुरु हो रहा होलाष्टक फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के साथ खत्म होगा. इस साल होलिका दहन 24 मार्च को होगा. इस वजह से होलाष्टक का समापन भी 24 मार्च को होगा. उसके अगले दिन 25 मार्च को होली का त्योहार मनाया जाएगा.
होलाष्टक के समय कौन से कार्य नहीं होंगे?
1. होलाष्टक के समय में कोई भी शुभ कार्य नहीं होंगे.
2. इन 8 अशुभ दिनों में कोई नया कार्य, नई दुकान या नया बिजनेस शुरु नहीं करता है.
3. होलाष्टक में विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश, मुंडन समेत कोई भी प्रमुख संस्कार या अनुष्ठान नहीं होगा.
होलाष्ट में क्या करें?
1. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के 8 दिन तपस्या के होते हैं.
2. इस समय में सदाचार, संयम, ब्रह्मचर्य का पालन करें.
3. होलिका दहन के स्थान पर रोज छोटी-छोटी लकड़ियां एकत्र करके रखनी चाहिए.
4. इस दौरान अपनी क्षमता के अनुसार अन्न, वस्त्र, धन और अन्य वस्तुओं का दान करना चाहिए. इससे पुण्य फल प्राप्त होता है.
5. होलाष्टक के 8 दिन जप, तंत्र, मंत्र साधना और आध्यात्मिक कार्यों के लिए ठीक होते हैं. तंत्र साधना और सिद्धि के लिए यह समय श्रेष्ठ होता है.
होलाष्टक की मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक के समय में भक्त प्रह्लाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अनेकों कष्ट दिए थे ताकि वे हरि भक्ति को छोड़ दें और हिरण्यकश्यप की पूजा करें. लेकिन प्रह्लाद नहीं मानें और विष्णु भक्ति करते रहे. फिर भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण करके हिरण्यकश्यप का वध कर दिया और भक्त प्रह्लाद की रक्षा की.